आजकल फिर चुनावी बिगुल बड़े जोर शोर से सुनाई दे रहा है। आने वाले चुनाव वस्तुतहः बिहार चुनाव के पश्चात् महत्वपूर्ण होने वाले हैं जिससे मोदी सरकार का भविष्य का अनुमान अधिक पूर्णता से लगाया जा सकेगा। चूँकि मोदी सरकार एक चुनाव पूर्व पैटर्न में फँसती नजर आ रही है जैसे की बिहार चुनाव के पहले असहिष्णुणता के मुद्दे पर घिरी थी। अब आने वाले उत्तरप्रदेश एवं गुजरात चुनाव में वही समस्या हिंदु कट्टरवादी गौरक्षको के क्रूर वारदातों के रूप में विपक्ष के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है।
बीजेपी एवं आरएसएस दोनों को गौरक्षकों का पालनकर्ता समझा जाता रहा है, पर गौरक्षकों का सम्बन्ध क्या वाकई बीजेपी या आरएसएस से सम्बन्ध है? आज के मोदी के वक्तव्य ने इसपर सवालिया निसान लगा दिए हैं। उन्होंने कहा कि "फर्जी गौरक्षक को पहचानने की जरुरत है।" ऐसे लोगो को समाज को बांटने का काम नही करने देना चाहिए। आरएसएस ने भी लोगो से अपील की है कि ऐसे लोगों का भंडाफोड़ किया जाय जो खुद को गौरक्षा के नाम पे दलितों पर अत्याचार कर समाज को बांटने का काम कर रहे हैं।
अब स्पष्ट हो गया है कि मोदी सरकार पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए सक्रियता के साथ इस मुद्दे पर तार्किक ढंग से काम कर रही है जिससे किसी भी अन्य नुकसान से बचा जा सके। वास्तविक गौरक्षक और फर्जी गौरक्षक के अंतर को पहचानने की जरुरत है और समाज के सभी तबकों को लेकर साथ चलने की सभी कोशिशें मोदी सरकार द्वारा खुल कर प्रयास किया जा रहा है। आशा करते हैं कि ऐसे लोगो को सरकार अवश्य बेनकाब कर के उचित दंड दिलाएगी।
जयहिंद, जय भारत।
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