Monday, September 23, 2013

सीरिया में महाशक्तियों की नूरा कुश्ती

अरब क्रांति के अगले क्रम में सीरिया में तानाशाही का खात्मा इतना आसान नही था, जैसा की हम मिस्र और लीबिया में देख चुके हैं। पिछले 3 वर्षों से सीरिया सत्ता के संघर्ष में निरंतर झुलस रहा है। एक तरफ असद सरकार और दूसरी तरफ विद्रोही जिसमे विदेशी लड़ाके भरे पड़े हैं। 
जंग की  स्थिति तब विकट हो गयी जब विश्वमहाशक्तियों की विशेष रुचि सीरिया के गृहयुद्ध में बढ़ गयी।
यह स्थिति द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम समय के जर्मनी जैसी हो गयी है जब रसिया और अमेरिका के मध्य जर्मनी के नियंत्रण को लेकर भयानक तनाव पैदा हो गया था फलस्वरूप जर्मनी दो टुकड़ो में बंट गया था।
सीरिया के गृहयुद्ध मे अब तक लाखों नागरिकों की जाने जा चुकी हैं, अभी ताज़ा घटना मे रासायनिक हथियारों के प्रयोग से एक साथ 1400 लोगों के मारे जाने से सारा विश्व स्तब्ध रह गया, जिसमे 'सरीन' नमक अत्यंत जहरीली गैस का प्रयोग इस नरसंहार में हुआ था। अमेरिका और पश्चिमी देशों ने इस घटना के लिए राष्ट्रपति असद को जिम्मेदार ठहराया, और असद के विरुद्ध सीधे सैनिक कार्यवाई पर विचार  करने लगे। असद ने रासायनिक हथियों के प्रयोग के आरोपों का खंडन करते हुए विद्रोहियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया और कहा कि "विद्रोही मेरे खिलाफ खडयंत्र रच रहे हैं और उन्होंने ही सरीन का प्रयोग मुझे बदनाम करने के लिये किया"। रूस असद के समर्थन में आते हुए अमेरिका को चेतावनी देते हुए सीरिया के खिलाफ किसी भी सैनिक कार्यवाही से बचने की सलाह दी।
यहीं से सीरिया विश्वशक्तियों के ताल ठोकने का अखाड़ा बन गया, जिसमे एक तरफ अमेरिका, ब्रिटेन और  फ्रांस सीरिया के खिलाफ कड़ी सैनिक कार्यवाही की वकालत कर रहे हैं, वही दूसरी तरफ ऐसे किसी भी हमले के खिलाफ रूस असद के पक्ष में खुल कर खड़ा हो गया है और कहा है कि कोई भी कार्यवाई सुरक्षा परिषद के अंतर्गत होनी चाहिए। यह घटना रूस को पुनः शीतयुद्ध की भंगिमा में ला दिया। संयुक्त राष्ट्र संघ के सुरक्षा परिषद में सीरिया के खिलाफ लाया गया प्रस्ताव रूस और चीन के वीटो के कारण संयुक्त राष्ट्र कि भूमिका मात्र सीरिया मे रासायनिक हथियारों कि जांच करने तक सीमित हो गयी। इस कारण अमेरिका अपने सहयोगी ब्रिटेन के साथ सीरिया के खिलाफ सैनिक हमले की योजना बनायी, परंतु ब्रिटेन की संसद में इस योजना पर अनुमोदन प्राप्त नही हुआ। इराक और अफगानिस्तान के कटु अनुभवों को देखते हुए खुद अमेरिका में हमले के खिलाफ विरोध के स्वर उठने लगे, तब राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अकेले ही अमेरिका द्वारा सीमित हवाई हमले करने की बात करने लगे। 
गौरतलब है कि सीरिया ने किसी भी विदेशी हस्तक्षेप को रोकने के लिए अपने हवाई क्षेत्र को रूस कि एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल कि मदद से हवाई रक्षा कवच अभेद्य बना दिया है, जिसको मात्र गहन हमले से ही तोड़ा जा सकता है। रूस ने अमेरिका की एकतरफा हवाई हमले की कड़ी आलोचना की और असद के पक्ष में और मजबूती से खड़े होने के संकेत दिये, इसी कारण सेंटपीटर्सबर्ग में आयोजित जी-20 सम्मेलन मे स्नोडेन प्रकरण की वजह से रूस से नाराज अमेरिका को पुनः रूसी राष्ट्रपति पुतिन से साथ बातचीत की मेज पर ला दिया। 


 सेंटपीट्सबर्ग में बराक ओबामा और पुतिन की सीरिया मुद्दे पर सीधी बातचीत के कुछ सार्थक परिणाम नजर आए जिसके फलस्वरूप रूस ने सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव पेश किया जिसके तहत सीरिया को तय समय में अपने सारे हथियार संयुक्त राष्ट्र के निगरानी में लाने होंगे। इस प्रस्ताव पर अमेरिका को अनमने मन से स्वीकार्य करना पड़ा, जिसके कारण सीरिया पर हमले संभावना अभी टल गयी है। इस संदर्भ में भारत भी सुरक्षा परिषद के अंतर्गत पारित प्रस्तावों के अनुरूप कार्यवाई का समर्थन किया है। 
इन सभी घटनाओं से एकबार फिर शीतयुद्ध के बाद सीरिया के संदर्भ में  रूस और अमेरिका के पुराने आक्रामक और चिंताजनक तेवर देखकर विश्व समुदाय सशंकित हो उठा।   

 

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